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उन्नाव शुरुआती 42 दिनों तक शिशु को होती है विशेष देखभाल की जरूरत

शुरुआती 42 दिनों तक शिशु को होती है विशेष देखभाल की जरूरत

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गुडिया रावत उन्नाव रिपोर्ट

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन चला रहा गृह आधारित नवजात देखभाल कार्यक्रम
उन्नाव, 22 नवंबर 2022
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा गृह आधारित नवजात देखभाल कार्यक्रम (एचबीएनसी) चलाया जा रहा है जिसके तहत आशा कार्यकर्ता बच्चे के जन्म के बाद 42 दिन के भीतर छह/सात बार भ्रमण करती हैं | एचबीएनसी कार्यक्रम का उद्देश्य सभी नवजात को अनिवार्य नवजात शिशु देखभाल सुविधायेँ उपलब्ध कराना, समय पूर्व पैदा होने वाले और जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों की शीघ्र पहचान कर उनकी देखभाल करना, नवजात की बीमारी का शीघ्र पता कर समुचित देखभाल एवं रेफ़र करना, परिवार को आदर्श व्यवहार अपनाने के लिए प्रेरित एवं सहयोग करना तथा माँ के अंदर अपने नवजात के स्वास्थ्य की सुरक्षा करने का आत्मविश्वास एवं दक्षता का विकास करना है |
सरैया बंथर क्षेत्र की आशा कार्यकर्ता अनीता देवी बताती है कि जब वे प्रसूता शिवलता के घर प्रसव के 14वें दिन भ्रमण करने गयी तो उसने देखा कि नवजात के सिर और शरीर में छोटे-छोटे दाने हैं |
आशा कार्यकर्ता नवजात को लेकर स्वास्थ्य केंद्र गई जहां डाक्टर ने बताया कि नवजात को संक्रमण है और उसका समय से इलाज शुरू हो गया और अब वह स्वस्थ है | अनीता ने बताया कि घरवालों का मानना था कि दाने तो बहुत से बच्चों में गंदगी के कारण निकल आते हैं | यह अपने आप ही ठीक हो जाएंगे | अनीता बताती है कि सिर पर एक फोड़ा या शरीर में 10 से अधिक दाने ऐसे में नवजात की जांच करवाना जरूरी है और उसे स्वास्थ्य केंद्र लेकर जाना चाहिए|
वही बंथर क्षेत्र की आशा कार्यकर्ता रीता ने प्रसूता आरती के घर पर प्रसव के 28वें दिन भ्रमण किया तो देखा कि नवजात के हाथ और पैरों का रंग पीला था | वह स्वयं स्तनपान भी नहीं कर पा रहा था | माँ अपना दूध निकालकर कटोरी और चम्मच से उसे पिला रही थी | आशा कार्यकर्ता नवजात को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गई और वहाँ से बच्चे को जिला अस्पताल संदर्भित किया गया जहां बच्चे को तीन दिन फ़ोटोथेरेपी (विशेष प्रकार की रोशनी, जो कि बिलिरूबिन को तोड़ता है) दी गई और बच्चे को घर भेज दिया गया | बच्चा बिल्कुल स्वस्थ है | रीता ने बताया कि जिस कमरे में माँ और नवजात रहते थे वहाँ बहुत ज्यादा रोशनी नहीं थी इसलिए समझ ही नहीं पाए की नवजात को पीलिया हो गया है |
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. सत्य प्रकाश बताते हैं कि नवजात में खतरों के लक्षण की पहचान कर समय से चिकित्सीय जांच और इलाज कराकर किसी भी अनहोनी से बचा जा सकता है | जीवन के पहले छह सप्ताह अर्थात 42 दिन शिशु के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते है और इस दौरान उनको देखभाल और समुचित निगरानी की बहुत जरूरत होती है |
ऐसे में आशा कार्यकर्त्ता नवजात में खतरे के लक्षणों को पहचान कर जल्द से जल्द स्वास्थ्य केंद्र ले जाती है | आशा कायकर्ता के पास एचबीएनसी किट होती है जिसमे वजन मशीन, डिजिटल थर्मामीटर और डिजिटल घड़ी और कंबल सहित कुछ दवाएं भी जाती हैं |
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प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य के नोडल अधिकारी डा. हरिनन्दन प्रसाद ने बताया कि प्रसव के बाद महिला को चिकित्सक की सलाह पर अस्पताल में 48 घंटे तक अवश्य रहना चाहिए ताकि प्रसूता और नवजात की समुचित जांच और इलाज हो सके |साथ ही नवजात का टीकाकरण भी अवश्य कराना चाहिए |
इसके साथ ही जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के तहत बीमार नवजात को निःशुल्क इलाज की सुविधा उपलब्ध है | इस कार्यक्रम के तहत नवजात को उपचार( औषधि एवं कंज्यूमेबल्स), आवश्यक निदान, रक्त का प्रावधान, एम्बुलेंस की सुविधा, उच्च स्तरीय स्वास्थ्य केंद्र पर सन्दर्भन की स्थिति में, स्वास्थ्य केंद्र से उच्च स्तरीय स्वास्थ्य केंद्र तक जाने तथा वापिस घर तक आने के लिए निःशुल्क परिवहन सुविधा सरकार द्वारा दी गई है |
सिकंदरपुर कर्ण क्षेत्र की आशा संगिनी अनीता कुशवाहा बताती हैं कि संस्थागत प्रसव के मामले में तीसरे, 7वें, 14वें, 21वें, 28 वें और 42 वें दिन तथा घर में जन्म के मामले में उपरोक्त छह दिन के साथ पहले दिन भी बच्चे के घर का भ्रमण करते हैं | इस दौरान बच्चे का वजन, बुखार, , शरीर में ऐंठन, झटके या दौरे आना, ठंडा बुखार या हाइपोथर्मिया, सुस्त रहना, सांस तेज या धीरे चलना, बच्चा दूध ठीक से पी रहा है या नहीं, जन्मजात विकृति आदि के बारे में जांच करते हैं और आवश्यकता पड़ने पर उसे स्वास्थ्य केंद्र लेकर जाते हैं | \इसके अलावा परिवार के सदस्यों को हाथ धोने के सही तरीके के बारे में भी बताते हैं क्योंकि गंदे हाथों से नवजात को छूने और स्तनपान कराने से वह बीमार हो सकता है |

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anupam

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