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अहम व अभिमान प्रभु के ग्रास हैं जबकि सादगी दया करूणा नमृता मदद सहायता स्वाभिमान प्रभु के आभूषण  सुनील अमर टैगोर 

अहम व अभिमान प्रभु के ग्रास हैं जबकि सादगी दया करूणा नमृता मदद सहायता स्वाभिमान प्रभु के आभूषण  सुनील अमर टैगोर 

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अरविंद कुमार श्रीवास्तव रिपोर्ट

अहम व अभिमान प्रभु के ग्रास हैं जबकि सादगी दया करूणा नमृता मदद सहायता स्वाभिमान प्रभु के आभूषण  *सुनील अमर टैगोर*  आज मानव का दायरा संकीर्ण संकुचित व बहुत छोटा व दम्भ अभिमान से परिपूर्ण हो गया है । बडा सोचनीय विचारणीय चिंतनीय विषय है कि हमारे समक्ष ही पहले पहचान खानदान परिवार से होती थी और रिफरैनस /परिचय भी सबसे बुजुर्ग व्यक्ति का दिया जाता था वो चाहे दादा बाबा ताऊ आदि कोई भी हो । आज के परिवेश व प्रचलन में सर्वाधिक मैं महत्वपूर्ण हो गया है । नमस्ते आदि भी बिना किसी मतलब के कोई किसी से नहीं करता है । इतना सैल्फ विश इंसान होता जा रहा है । कि संबंध कोई मायने नहीं रखते हैं। पृगाढ से पृगाढ संबंध भी पल भर में खत्म हो जाते हैं। हर रिश्ते संबंध की बुनियाद तौल पर आधारित है। जो जितना बजनदार है बस वही असरदार है। हर चीज दिखावटी व आर्टिफिशल होती जा रही है। जो दिखता है वही बिकता है। या यूं कहा जाए कि सबका पैमाना बन गया है। आज रिश्ते संबंध अपनापन सब में बेगानापन आता जा रहा है । सिर्फ और सिर्फ पैसा चमक दमक दिखावा को ही वरीयता दी जा रही है । बेहद अफसोसजनक निराशाजनक खेदजनक * सुनील अमर टैगोर की कलम से * जय सच्चिदानंद ।।

anupam

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