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यूपी में बीजेपी के लिए कितना आसान या मुश्किल है 80 में 80 का लक्ष्‍य

यूपी में बीजेपी के लिए कितना आसान या मुश्किल है 80 में 80 का लक्ष्‍य

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👉 *यूपी में बीजेपी के लिए कितना आसान या मुश्किल है 80 में 80 का लक्ष्‍य, किन सीटों पर है चुनौती समझें समीकरण*

भाजपा ने यूपी के लिए मिशन-80 तय किया है। मगर लक्ष्य तक पहुंचने की डगर आसान नहीं है। इसके लिए 2019 में हारी हुई 14 सीटें जीतनी होंगी। उपचुनाव में जीती आजमगढ़ और रामपुर सीटों पर भी चुनौती है।वहीं प्रदेश की 11 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जिनमें हार-जीत का अंतर 25 हजार से कम था। इनमें से भाजपा ने 9 सीटें जीती थीं। मछलीशहर लोकसभा सीट पर तो भाजपा ने बसपा पर सिर्फ 181 वोटों से जीत दर्ज की थी। जबकि मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत, सुल्तानपुर, चंदौली, कन्नौज, बदायूं जैसी सीटों पर भी हार-जीत का अंतर कम था।

भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए ने लंबे सियासी वनवास के बाद यूपी में 2014 में 80 में से 73 सीटें जीती थीं। 2019 में यह संख्या 64 रही थी। सीटें कम होने के बावजूद भाजपा का वोट शेयर बढ़ा था। हारी हुई 16 सीटों में से आजमगढ़ और रामपुर सीटें उपचुनाव में भाजपा ने सपा से छीन ली थीं। मगर आजमगढ़ में भाजपा के दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ की जीत का अंतर महज 8679 वोटों का था। वहीं रामपुर में भाजपा के घनश्याम सिंह लोधी करीब 42 हजार से जीते थे। हारी सीटों में मैनपुरी और रायबरेली लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जिनका तिलिस्म अभी भाजपा नहीं तोड़ पाई है।

भाजपा कर रही 360 डिग्री प्लान पर काम
अब 2024 की बात करें तो भाजपा को प्रदेश की करीब दो दर्जन सीटों पर विपक्ष से कड़ी चुनौती मिल सकती है। इसमें हारी के साथ ही जीती हुई, वो सीटें शामिल हैं जहां हार-जीत का अंतर अधिक नहीं था। हालांकि पार्टी ने काफी पहले ही इन सीटों को रेड जोन में शामिल करते हुए इन्हें जीतने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया था। यह कवायद संगठन और सरकार दोनों स्तर पर की गई है। पार्टी ने सबसे पहले हारी सीटों पर लोकसभा और विधानसभा विस्तारक भेजे। केंद्रीय मंत्रियों को इन सीटों की जिम्मेदारी दी थी। वहीं सामाजिक समीकरण को देखते हुए हारी हुई दो सीटें बिजनौर और घोसी अपने सहयोगियों रालोद और सुभासपा को दे दी हैं। दूसरे दलों के मजबूत चेहरों को पार्टी में शामिल कराया जा रहा है। सामाजिक समीकरण साधने पर भी पार्टी का फोकस है।

15 हजार से कम वोटों से जीती थीं सात सीटें
भाजपा द्वारा जीती सीटों में से सात तो 15 हजार वोटों तक के मार्जिन वाली थीं। हार-जीत का सबसे कम अंतर मछलीशहर सीट पर था। वहां भाजपा के बीपी सरोज ने बसपा के त्रिभुवन राम को मामूली अंतर से हराया था। दूसरे कम अंतर वाली जीत मेरठ सीट पर हुई थी। यहां भाजपा के राजेंद्र अग्रवाल ने बसपा के हाजी याकूब पर 4729 वोट से जीत दर्ज की थी। मुजफ्फरनगर सीट पर भाजपा के संजीव बालियान ने रालोद के चौधरी अजित सिंह को 6526 वोटों से हराया था। जबकि कन्नौज सीट पर भाजपा के सुब्रत पाठक सपा की डिंपल यादव से 12353 वोटों से जीते थे। चंदौली सीट पर केंद्रीय मंत्री डा. महेंद्रनाथ पांडेय की जीत का अंतर 13959 वोट का था। सुल्तानपुर सीट पर भाजपा की मेनका गांधी 14526 वोटों से जीती थीं। जबकि बलिया सीट पर भाजपा के वीरेंद्र सिंह मस्त 15519 वोटों से जीते थे। वहीं दूसरी ओर कम मार्जिन वाली एक सीट बसपा के खाते में आई थी। श्रावस्ती सीट पर बसपा के राम शिरोमणि वर्मा ने भाजपा के ददन मिश्र को 5320 वोटों से हराया था।

बदले सियासी समीकरणों से बढ़ीं भाजपा की उम्मीदें
भाजपा ने यूपी की सभी 80 सीटें जीतने का लक्ष्य यूं ही तय नहीं किया है। प्रदेश में हुए तमाम सियासी उलटफेर ने भाजपा की उम्मीदों को पंख लगाए हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा, बसपा और रालोद साथ थे। इसी समीकरण ने महागठबंधन को 15 सीटें जिताई थीं, जिसमें 10 बसपा और 5 सपा के खाते में आई थीं। अब हालात बदल चुके हैं। बसपा अब अलग से मैदान में है। जबकि रालोद अब एनडीए का हिस्सा बन चुका है। पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो 38 सीट पर लड़ने वाली बसपा को 19.43 फीसदी वोट मिले थे। जबकि 37 सीट पर लड़ी सपा के खाते में 18.11 फीसदी वोट आए थे। इसके अलावा पूर्वांचल में राजभर वोटों पर प्रभाव रखने वाले ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा भी अब एनडीए का हिस्सा है।

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anupam

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