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सहरसा बिहार गुमनाम हो रहा है कुम्हार का दीप

गुमनाम हो रहा है कुम्हार का दीप

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*संवाददाता :-* विकास कुमार सहरसा (बिहार)।

*एंकर :-* बिजली की चकाचौंध और चीनी भूक—भूक बत्तियों से पटे आज के बाजार से कुम्हारों के दिए बनाने के पुस्तैनी कारोबार पर ग्रहण लगने लगा है। दिवाली और छठ के मौके पर कुम्हारों के बनाए दिए,चुक्के और अन्य मिटटी के बर्तनों से जहां पूजा–पाठ और त्यौहार के मद्देनजर सजावटी काम बड़े उत्साह और समर्पण के साथ किये जाते थे वहीँ इस उद्यम से कुम्हारों का भी अच्छा कारोबार हो जाता था।लेकिन आज बिजली की चकाचौंध ने दिए और चुक्के के पुरे कुनबे को ही एक तरह से लील लिया है।अमूमन हर बाजार में चीनी चकमक से सजे बिजली के झालर और जुगनुओं से सजे अन्य सामान भरे रहते हैं।ख़ास बात यह है की आधुनिकता में और पर्यावरण में प्रदुषण के नाम पर लोग खासकर दीपों के महापर्व पर दिए और चुक्के के प्रयोग से न केवल अब कतराने लगे हैं बल्कि बिजली के जुगनुओं से पर्व को भी फ़टाफ़ट अंदाज पर मनाने का दृढ मन भी बना चुके हैं।जाहिर तौर पर लोगों के बदले मिजाज और बाजार पर चढ़े नए रंग से आज कुम्हारों के पुस्तैनी कारोबार पर न केवल ग्रहण लग रहा है बल्कि उनके पेट पर भी बड़ा ख़तरा मंडरा रहा है
जिस दिया–बाटी और चुक्के से कुम्हारों के एक मुश्ते साल भर की कमाई होती थी वह धंधा आज बंद होने के कगार पर है।सही मायने में आब चीनी चकमक से गुम हो रहे हैं कुम्हार के दिए।दीपों का अनूठा और महान महापर्व दिवाली सामने है।यह वह पर्व है जिसके आने का जहां आमलोग हर्ष और उल्लास के इजहार से पर्व मनाने केलिए इसका इन्तजार करते हैं वहीँ समाज का एक तबका कुम्हारों का ऐसा है जो अपने घर परिवार की गाड़ी बेहतर तरीके से खिंच सके इसके लिए इन्तजार करते हैं। दीया–बाती,चुक्के और अन्य मिटटी का सामान चाक पर गढ़के कुम्हार दिवाली के मौके पर साल भर की कमाई कर लेते थे।इस पर्व के मौके पर हुयी कमाई से इन कुम्हारों के परिवार के दिन कुल–मिलाकर अच्छे कटते थे।लेकिन विगत कुछ वर्षों से कुम्हारों के पुस्तैनी कारोबार चीन निर्मित झालर और बिजली के सामानों से खासे प्रभावित हैं।
लोग पहले दिवाली में घी के दिए जलाते थे लेकिन समय बदला और लोग पहले सरसों तेल फिर किरासन तेल से काम चलाने लगे।अब वह समय भी लगभग जाने को है।लोग बदले परिवेश में पर्व–त्यौहार को भी बस मना देने के अंदाज में मनाने लगे हैं।बाजार में बिजली के जुगनुओं की भरमार है जिसे अपने घर में सजा कर लोग दीया और चुक्के से एक तरह से परहेज करने लगे हैं।जाहिर सी बात है इससे कुम्हारों के पेट पर लात पर रही है।
अपने पुस्तैनी कारोबार की विरासत को संभाले राजा रामकुमार प्रजाति ने कहा कि चाक घुमा–घुमाकर दीया और चुक्के तो बना रहे हैं लेकिन बिक नहीं रह है।दिवाली के मौसम में बस कुछ दिए और अन्य मिटटी के सामान वे बनाते हैं लेकिन वह भी बिकना मुश्किल हो जाता है।अब लगता है कि यह काम अब छोड़ना पड़ेगा।
*BYTE :-* राजाराम कुमार प्रजापति कुम्हार।
*BYTE :-* भगवान जी कुमार पंडित कुम्हार।

anupam

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