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फिरोजाबाद आज वैकुण्ठ चतुर्दशी का पावन पर्व है

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पंडित श्याम शर्मा मंडल प्रभारी
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वैकुण्ठ चतुर्दशी 2021 की कथा एवम पूजा विधि !!
वैकुण्ठ चतुर्दशी को हरिहर का मिलन कहा जाता हैं अर्थात भगवान शिव और विष्णु का मिलन . विष्णु एवं शिव के उपासक इस दिन को बहुत उत्साह से मनाते हैं . खासतौर पर यह उज्जैन, वाराणसी में मनाई जाती हैं . इस दिन उज्जैन में भव्य आयोजन किया जाता हैं. शहर के बीच से भगवान की सवारी निकलती हैं, जो महाकालेश्वर मंदिर तक जाती हैं . इस दिन उज्जैन में उत्सव का माहौल चारो और रहता हैं दिवाली त्यौहार की तरह भगवान शिव और विष्णु का मिलन का उत्साह से मनाया जाता हैं .

वैकुण्ठ चतुर्दशी महाराष्ट्र में मराठियों द्वारा भी बड़ी धूम धाम से मनाते है. महाराष्ट्र में वैकुण्ठ चतुर्दशी की शुरुवात शिवाजी महाराज और उनकी माता जीजाबाई ने की थी, इसमें इन लोगों का साथ गौड़ सारस्वत ब्राह्मण ने दिया था. वहां पर ये त्यौहार बहुत ही अलग ढंग से मनाते है !
यह हिन्दू धर्म में मनाई जाने वाली चतुर्दशी कार्तिक शुक्ल पक्ष में आती हैं. कहा जाता हैं भगवान विष्णु ही संसार में सभी मांगलिक कार्य करवाते हैं लेकिन वे चार महीने की योगनिंद्रा में चले जाते हैं, इसलिये इन चार महीनों में मांगलिक कार्य नहीं होते . इन चार दिनों में भगवान शिव सारा कार्यभार संभालते हैं . इस प्रकार जब भगवान विष्णु योगनिंद्रा से उठते हैं तो भगवान शिव इन्हें सारे कार्य सौंप देते हैं उसी दिन को वैकुण्ठ चतुर्दशी कहा जाता हैं .

इस बार वैकुण्ठ चतुर्दशी 17 नवम्बर 2021 को मनाई जाएगी.
चतुर्दशी तिथि शुरू 28 नवम्बर को 14:06 बजे से
चतुर्दशी तिथि ख़त्म 29 नवम्बर को 12:53 बजे तक
वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत की कथा !!
कथा 1: इस दिन को हरिहर का मिलन कहा जाता हैं . भगवान विष्णु वैकुण्ठ छोड़ कर शिव भक्ति के लिए वाराणसी चले जाते हैं और वहाँ हजार कमल के फूलों से भगवान शिव की उपासना करते हैं वे भगवान शिव की पूजा में तल्लीन हो जाते हैं और जैसे ही नेत्र खोलते हैं उनके सभी कमल फूल गायब हो जाते हैं तब वे भगवान शिव को अपनी एक आँख जिन्हें कमल नयन कहा जाता हैं वो अर्पण करते हैं, उनसे प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट होते हैं और उन्हें नेत्र वापस देते हैं साथ ही विष्णु जी को सुदर्शन चक्र देते हैं . यह दिन वैकुण्ठ चतुर्दशी का कहलाता हैं इस प्रकार हरी (विष्णु ) हर (शिव) का मिलन होता हैं .

कथा 2 : एक धनेश्वर नामक ब्राह्मण था जो बहुत बुरे काम करता था . उसके माथे कई पाप थे . एक दिन वो गोदावरी नदी के स्नान के लिए गया उस दिन वैकुण्ठ चतुर्दशी थी . कई भक्तजन उस दिन पूजा अर्चना कर गोदावरी घाट पर आये थे उस दिन भीड़ में धनेश्वर उन सभी के साथ था इस प्रकार उन श्रद्धालु के स्पर्श के कारण धनेश्वर को भी पूण्य मिला . जब उसकी मृत्यु हो गई तब उसे यमराज लेकर गये और नरक में भेज दिया . तब भगवान विष्णु ने कहा यह बहुत पापी हैं पर इसने वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन गोदावरी स्नान किया और श्रद्धालु के पूण्य के कारण इसके सभी पाप नष्ट हो गये इसलिए इसे वैकुण्ठ धाम मिलेगा .

कैसे मनाई जाती हैं वैकुण्ठ चतुर्दशी ?
इस दिन उज्जैन में भव्य यात्रा निकाली जाती हैं जिसमे ढोल नगाड़े बजाये जाते हैं लोग नाचते हुये आतिश बाजी के साथ महाकाल मंदिर जाकर बाबा के दर्शन करते हैं .
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती हैं . विष्णु सहस्त्र का पाठ किया जाता हैं, विष्णु मंदिर में कई तरह के आयोजन होते हैं .
इस दिन पवित्र नदियों में स्नान किया जाता हैं इससे सभी पापो का नाश होता हैं .
विष्णु जी योग निंद्रा से जागते हैं इसलिये उत्सव मनाया जाता हैं दीप दान किया जाता हैं .
वाराणसी के विष्णु मंदिर में भव्य उत्सव होता हैं इस दिन मंदिर को वैकुण्ठ धाम जैसा सजाया जाता हैं .
इस दिन उपवास रखा जाता हैं .
गंगा नदी के घाट पर दीप दान किया जाता हैं .
मनाने का तरीका !!
भारत के बिहार प्रान्त के गया शहर में स्थित ‘विष्णुपद मंदिर’ में वैकुण्ठ चतुर्दशी के समय वार्षिक महोत्सव मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि यहाँ विष्णु जी के पदचिह्न है. विष्णु जी के भक्तजन इस दिन कार्तिक स्नान करते है.
ऋषिकेश में गंगा किनारे एक बड़े तौर पर दीप दान का महोत्सव होता है. जो इस बात का प्रतीक है कि विष्णु अपनी गहरी निंद्रा से जाग उठे है, और इसी ख़ुशी में सब जगह दीप दान होता है.
वाराणसी ने काशी विश्वनाथ मंदिर में इस दिन विशेष आयोजन होता है, कहते है वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन ये वैकुण्ठ धाम ही बन जाता है.
विष्णु जी तुलसी की पत्ती को शिव जी को चढाते है, जबकि शिव जी बेल पत्ती को विष्णु जी को चढाते है.
वैकुण्ठ चौदस महाराष्ट्र में भी उत्साह से मनाई जाती हैं . यह उत्सव शिवाजी के काल से चला आ रहा हैं . शिवाजी की माता जीजा बाई पुरे रीति रिवाज के साथ वैकुण्ठ चतुर्दशी मनाती थी . पुरे कार्तिक में कमल के फुल भगवान शिव और विष्णु को अर्पित किये जाते थे . महाराष्ट्र में कुशवार्ता नामक कुंड में कई सारे कमल पुष्प रखे जाते थे . जीजा बाई की ऐसी मान्यता थी कि कार्तिक में ऐसे कमल पुष्प चढ़ाये जाये जिसे कोई मनुष्य हाथ न लगाये उनकी यह इच्छा किस तरह पूरी होगी इसका उपाय शिवाजी के पास भी नहीं था तब उनके एक अंग रक्षक दालवी ने इस कार्य को करने का बीड़ा उठाया . शिवाजी ने उससे कहा अगर तुम असफल हुए तो तुम्हे सजा मिलेगी . उसने स्वीकार किया . पुरे नगर की भीड़ यह कार्य देखने जमा हुई तब डालवी ने अपने तीर का निशान साध कर कमल पुष्प को सीधे टोकरी में पहुँचाया जिसे देख सभी प्रसन्न हो गये . इस प्रकार मान्यताओं के साथ सभी प्रान्त में वैकुण्ठ चतुर्दशी का त्यौहार मनाया जाता हैं .

महाराष्ट्र में वैकुण्ठ चतुर्दशी !!
मराठा सामराज्य के संस्थापक शिवाजी महाराज और उनकी माता ने इस त्यौहार की शुरुवात की थी. शिवाजी के राज्य अभिषेक के बाद रायगढ़ को राजधानी बनाया गया था, जहाँ एक बड़ा कमल का तालाब था, जिसे कुशवार्ता कहते थे. यहाँ कार्तिक माह में कमल के सफ़ेद, नीले एवं लाल रंग के बहुत सुंदर फूल खिलते है. जब शिवाजी और उनकी माता जीजाबाई ने ये दृश्य देखा तो जीजाबाई अपने पुत्र को वैकुण्ठ चतुर्दशी के बारे में बताती है. शिवाजी भगवान् विष्णु और शिव को याद करते है. विष्णु की तरह, जीजाबाई जगदीश्वर मंदिर में शिव जी को 1000 सफ़ेद कमल के फूल चढाने की इच्छा प्रकट करती है. जीजाबाई ने खुद फूलों का चुनाव करने की ठानी, ताकि कोई भी मुरझाया या दागी फूल शिव जी को न चढ़ाया जाये. शिवाजी ने अपनी माता की इच्छा को पूरी करने की सोची, लेकिन उनकी माता खुद फूलों को चुन रही थी, जिस बात से शिवाजी परेशान थे. उन्होंने इस बात को अपने दरबार में सबके सामने रखा.

दरबार में शिवाजी के रक्षक दलवी ने कहा कि वे फूलों को इकठ्ठा करेंगें वो भी बिना उन्हें छुए. शिवाजी ने उन्हें बोला कि अगर वे इस कार्य में फ़ेल होते है तो उन्हें सजा दी जाएगी. दलवी इसे स्वीकार लेते है. वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन सुबह-सुबह दलवी कमल के तालाब के पास जाते है, दलवी के इस कार्य को देखने के लिए आस पास के बहुत से लोग इक्कठे हो जाते है. फिर दलवी जमीन पर लेट जाते है, और एक तीर चलाते है. यह तीर एक के बाद एक सभी कमल के फूलों को भेदता हुआ आगे निकल जाता है. इसके बाद दलवी नाव ने तालाब में जाते है और प्रतिज्ञा अनुसार फूलों को बिना छुए चिमटे की सहायता से उठाते है. शिवाजी और जीजाबाई दलवी के इस कार्य से बेहद प्रसन्न होते है, और उन्हें ढेर सारे पैसे, जेवर बतौर उपहार देते है.
संकलनकर्ता – सच्चिदानन्द चतुर्वेदी
वशिष्ठ नगर बस्ती ॥

anupam

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