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सहरसा बिहार बेटे की खुशी के लिए पिता दे रहे हर कुर्बानी, क्रिकेट खेलते देखा बेटे को तो घर के आगे बना दी पीच

बेटे की खुशी के लिए पिता दे रहे हर कुर्बानी, क्रिकेट खेलते देखा बेटे को तो घर के आगे बना दी पीच

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*रिपोर्टर :-* विकास कुमार सहरसा (बिहार)।

*एंकर :-* एक कहावत है –
पढ़ोगे , लिखोगे , बनोगे नवाब !
खेलोगे , कूदोगे होगे खराब !!
कोसी और सीमांचल के इलाके में यह कहावत काफी लोकप्रिय है। सभी अपने बच्चे को यह कहावत सुना कर पढ़ाई-लिखाई में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
लेकिन जिले के सौर बाजार प्रखंड क्षेत्र सहुरिया पंचायत निवासी रामचंद्र यादव ठीक इसके विपरीत सोच रखते हैं।
वे पहले अपने बेटे अतुल आनंद को डॉक्टर और इंजीनियर बनाना चाहते थे। जिसके कारण मैट्रिक परीक्षा पास करने के साथ ही अपने पुत्र अतुल आनंद को राजस्थान के कोटा स्थित कोचिंग सेंटर में एडमिशन करवाया। उनका उद्देश्य था कि उनका बेटा या तो डॉक्टर बने या इंजीनियर।
लेकिन कुछ महीने बाद जब वे पुत्र से मिलने पहुंचे तो देखा कि उनका पुत्र कोटा के क्रिकेट मैदान पर अच्छी बल्लेबाजी भी कर रहे थे। साथ ही अच्छी गेंदबाजी भी कर रहे थे। बेटे की पढ़ाई से अधिक क्रिकेट में दिलचस्पी दिखी।
जिसके बाद उन्होंने पुत्र को खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। उनका पुत्र कोटा के जिला स्तर क्रिकेट में अच्छा नाम कमाने लगा। लेकिन कोटा में रह रहे उनके कोच ने उनकी प्रतिभा और उनके लगन को देखते हुए। उन्हें क्रिकेट में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। साथ ही उन्हें अपने जिले और बिहार राज्य की ओर से खेलने के लिए भी प्रोत्साहित किया।
जिसके बाद अंकित कोटा से बोरिया बिस्तर बांध और सहरसा पहुंच गया। अब वह सहरसा जिला स्तर पर अपने खेल की प्रतिभा दिखा रहा है।
पिता की यही सिर्फ भागीदारी नहीं रही। बल्कि पिता ने अपने पुत्र को क्रिकेट की सारी सुख सुविधा घर के आगे ही उपलब्ध करवा दी। जहां उन्होंने लगभग 80 हजार रुपए खर्च कर घर के आगे क्रिकेट पीच बना दिया। वही नेट सहित पूरी किट जो लाखों रुपए में आती है। उसे भी खरीद कर उपलब्ध करवा दिया। वे महंगी-महंगी गेंद और बैट लाकर दे रहे हैं। साथ में उनके उन्हें सिर्फ क्रिकेट पर ही ध्यान आकृष्ट करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
उनके पिता के साथ-साथ उनके बड़े भाई और छोटे भाई भी उनके पीछे उन्हें आगे बढ़ाने में दिन रात लगे हुए हैं। हालांकि अभी तक अंकित को कोई बड़ी सफलता हासिल नहीं हुई है। वह बिहार राज्य क्रिकेट टीम में सलेक्ट नहीं हुए है। लेकिन पिता उनके आगे बढ़ने में दिन-रात परिश्रम कर रहे हैं। गरीब परिवार होने के बावजूद भी अपने पुत्र को क्रिकेट जैसे महंगे खेल में खेलने के हर सुख सुविधा देने के लिए कभी नहीं करा रहे हैं। ऐसे पिता की देखरेख में एक दिन उनका पुत्र इतिहास लिखेगा। ऐसी उम्मीद भी वे रख रहे है।

anupam

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