सुपौल बिहार डर के साए में जी रहे बच्चे। टूटे झोपड़ी में पढ़ने को मजबूर।
डर के साए में जी रहे बच्चे। टूटे झोपड़ी में पढ़ने को मजबूर।

रिपोर्ट:-बलराम कुमार सुपौल बिहार।
एंकर:-मामला सुपौल जिला के त्रिवेणीगंज अनुमंडलीय मुख्यालय अंतर्गत प्रखंड क्षेत्र के औरलहा पंचायत वार्ड नं0-05-स्थित टूटे फूटे झोपड़ी में चल रही संस्कृत विद्यालय में मजबूरी में पढ़ने और डर के साए में जी रहे बच्चे की है।
वीडियो में साफ साफ दिखाई दे रहा है की विद्यालय का दीवाल कई जगहों से टूटा पड़ा है।
साथ हीं विद्यालय का दीवाल टूटने से टूटे फूटे टट्टी लगा कर पढ़ा रहे हैं।
वहीं बनी हुई विद्यालय में लगे टीना का चदरा कई जगहों पर साफ़ साफ़ टूटा नजर आ रहा है।
साथ हीं साफ साफ देखा जा रहा है की विद्यालय के पीछे दीवाल टट्टी सटे बांस का बिट के साथ जंगल नज र आ रहा है।
जो छोटे छोटे बच्चों के लिए खतरा है।
क्योंकि विद्यालय में लगे दीवाल और टट्टी ध्वस्त रहने के कारण पीछे लगे जंगल और बांस के बिट से सांप, बिच्छु, निकलने का डर बना रहता है।
आप वीडियो में ये भी साफ देख सकते हैं की बच्चों के लिए जो खाना बनाया जा रहा है।
वहाँ के ऊपर का टीना का चदरा टूटा हुआ दिखाई दे रहा है।
ऊपर टीना का चदरा टूटा रहने से आप समझ सकते हैं की कीड़े, मकोड़े,अन्य कोई चीज खाना में पड़ सकते हैं।
जिससे बच्चों के स्वास्थ्य पड़ असर पड़ सकता है।
साथ हीं कई बार देखा गया है की विद्यालय के खाने में कीड़ा,मकोड़ा, मिलने से बच्चे बीमार भी हो चुके हैं।
किसी तरह अस्पताल में इलाज कर बच्चों को बचाया गया है।
वहीं टूटे फूटे झोपड़ी में चल रहे विद्यालय के प्राचार्य से पूछा गया तो उन्होंने बताया की हमलोगों को सरकार की और से विद्यालय बनाने के लिए या फिर मरम्मती के किसी प्रकार का कोई फंड नहीं आता है।
जिस कारण ये स्थिति बनी हुई है।
पदाधिकारी, नेतागण, आते हैं देख कर चले जाते हैं।
एक तरफ सरकार विद्यालय के नाम पर करोड़ों अरबों रुपए खर्च करते हैं।
लेकिन धरातल कुछ और हीं बयां कर रही है।
वैसे भी हमारे देश में हमारे हीं संस्कृति के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।
जिस संस्कृत का उच्चारण शुभ से शुभ कार्य में किया जाता हो उसकी स्थिति हमारे देश में ऐसी बनी हुई है।
आखिर ऐसा सौतेला व्यवहार विद्यालय के नाम पर क्यों किया जा रहा है।
जब सरकार द्वारा विद्यालय में शिक्षकों को वेतन दिया जा रहा है।
बच्चों को खाना दिया जा रहा है।
बच्चों को अन्य विद्यालय के तरह सभी सुविधाएं दी जा रही है।
फिर संस्कृत विद्यालय को भवन बनाने के लिए या फिर विद्यालय की मरम्मती के लिए सरकार एक सामान्य व्यवस्था लागू क्यों नहीं कर रही है।
सिर्फ संस्कृत विद्यालय के नाम पर ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों।
वैसे विद्यालय में एक सौ तेईस बच्चे नामांकन है लेकिन मोके पर करीब पच्चीस बच्चे हीं पढ़ते दिखाई दिए।
विद्यालय की अच्छी व्यवस्था नहीं रहने के कारण बच्चे विद्यालय में कम आते हैं।
वहीं प्राचार्य द्वारा- MDM,-के नाम पर करीब पच्चीस पढ़ते हैं।
लेकिन -MDM-का बिल सौ का बनाते हैं।
अब देखना लाजमी होगा की सुशासन बाबू की नजर इस और कब तक पड़ती है।
या फिर ऐसे हीं सुशासन बाबू संस्कृत विद्यालय के नाम पर नजर अंदाज करते रहेंगे।
या फिर ऐसे हीं संस्कृत विद्यालय के नाम पर गहरी नींद में सोए रहेंगे।
बाईट:-प्राचार्य, संस्कृत विद्यालय।
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